Dr. Arpit Kumar Saha Delivers Engaging Microbiology Lecture: शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में आज डॉ. अर्पित कुमार साहा, एक प्रसिद्ध माइक्रोबायोलॉजिस्ट और शोधकर्ता, ने माइक्रोबायोलॉजी के महत्व पर विस्तृत व्याख्यान और कक्षा प्रदर्शन किया। यह कार्यक्रम मेडिकल छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें उन्होंने सूक्ष्मजीवों के अध्ययन की चिकित्सा, कृषि, पर्यावरण और बायोटेक्नोलॉजी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका पर जोर दिया।
माइक्रोबायोलॉजी का महत्व
डॉ. अर्पित कुमार साहा ने अपने व्याख्यान की शुरुआत माइक्रोबायोलॉजी के महत्व को रेखांकित करते हुए की। उन्होंने बताया कि सूक्ष्मजीवों का अध्ययन न केवल चिकित्सा के लिए बल्कि समाज के स्वास्थ्य और विकास के लिए भी अत्यधिक आवश्यक है। “माइक्रोबायोलॉजी के बिना चिकित्सा विज्ञान की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और प्रोटोजोआ जैसे सूक्ष्मजीवों की पहचान और उनके व्यवहार को समझने से ही हम बीमारियों का इलाज, टीकाकरण और रोग नियंत्रण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं,” डॉ. साहा ने कहा।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सूक्ष्मजीवों का अध्ययन केवल संक्रमण से निपटने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर के आंतरिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में समझ विकसित करने में भी मदद करता है। उदाहरण स्वरूप, उन्होंने बताया कि मानव शरीर में रहने वाले सूक्ष्मजीवों, जिन्हें हम माइक्रोबायोम कहते हैं, की भूमिका हमारे स्वास्थ्य में कितनी महत्वपूर्ण होती है।
कक्षा प्रदर्शन: सूक्ष्मजीवों के अध्ययन के तकनीकी पहलू
डॉ. साहा ने व्याख्यान के बाद कक्षा में सूक्ष्मजीव विज्ञान के विभिन्न परीक्षणों और तकनीकों का प्रदर्शन किया। उन्होंने छात्रों को बताया कि कैसे बैक्टीरिया की पहचान की जाती है और संक्रमण के उपचार के लिए उपयुक्त एंटीबायोटिक्स का चयन किया जाता है। कक्षा प्रदर्शन के दौरान उन्होंने बैक्टीरिया कल्चरिंग (Bacterial Culturing) की प्रक्रिया का विस्तार से प्रदर्शन किया, जिसमें बैक्टीरिया को आहार माध्यमों पर उगाकर उनकी पहचान की जाती है।
इसके अलावा, डॉ. साहा ने एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परीक्षण (Antibiotic Sensitivity Testing) भी दिखाया। इस परीक्षण में बैक्टीरिया को विभिन्न एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में लाकर यह जांचा जाता है कि कौन सी दवाइयाँ उस बैक्टीरिया पर प्रभावी हैं। उन्होंने बताया कि यह परीक्षण डॉक्टरों को सही एंटीबायोटिक दवा के चयन में मदद करता है, जिससे रोगियों का जल्दी और सही उपचार किया जा सकता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण तकनीक पर चर्चा करते हुए डॉ. साहा ने छात्रों को आसेप्टिक तकनीक (Aseptic Technique) के बारे में बताया, जिसका उपयोग प्रयोगशाला में बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीवों के संदूषण को रोकने के लिए किया जाता है। उन्होंने यह भी समझाया कि सूक्ष्मजीवों के अध्ययन में साफ-सफाई और संक्रमण से बचाव कितना महत्वपूर्ण है।
माइक्रोबायोलॉजी में नई दिशाएँ और शोध
डॉ. साहा ने अपने व्याख्यान में माइक्रोबायोलॉजी में हो रहे नवीनतम शोधों और तकनीकी विकासों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने विशेष रूप से मॉलिक्यूलर माइक्रोबायोलॉजी (Molecular Microbiology) और जीनोमिक सीक्वेंसिंग (Genomic Sequencing) जैसे आधुनिक शोध क्षेत्रों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इन शोधों के माध्यम से आजकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट सूक्ष्मजीवों के जीनोम को समझने में सक्षम हैं, जिससे नए और अधिक प्रभावी उपचार विकसित किए जा सकते हैं।
“आजकल के उन्नत तकनीकी उपकरणों की मदद से हम सूक्ष्मजीवों के डीएनए और आरएनए का अध्ययन कर सकते हैं, जो हमें नए प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस और फंगस की पहचान करने में मदद करता है,” डॉ. साहा ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि क्रिस्पर (CRISPR) जैसी जीन संपादन तकनीक से सूक्ष्मजीवों के जीनों को संपादित किया जा सकता है, जो भविष्य में बीमारी के उपचार और प्रबंधन के लिए एक क्रांतिकारी उपकरण साबित हो सकता है।
इसके अलावा, डॉ. साहा ने एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस (Antibiotic Resistance) के बढ़ते खतरे के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि सूक्ष्मजीवों में उत्पन्न होने वाली दवाओं के प्रतिरोधी क्षमता से निपटने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। “एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस एक गंभीर समस्या बन चुकी है, और इसे सुलझाने के लिए सूक्ष्मजीवों के अध्ययन में लगातार नए कदम उठाए जा रहे हैं,” डॉ. साहा ने कहा।
माइक्रोबायोलॉजी में करियर के अवसर
डॉ. साहा ने छात्रों को माइक्रोबायोलॉजी में करियर के कई अवसरों के बारे में बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि माइक्रोबायोलॉजी केवल चिकित्सकीय शोध और उपचार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें बायोटेक्नोलॉजी, कृषि, पर्यावरण संरक्षण, और खाद्य सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी अवसर हैं। “माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में काम करने के लिए यह जरूरी नहीं कि आप केवल डॉक्टर या शोधकर्ता बनें। आप बायोटेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल उद्योग, और यहां तक कि पर्यावरण संरक्षण और कृषि में भी अपने करियर को संवार सकते हैं,” डॉ. साहा ने छात्रों को प्रेरित करते हुए कहा।
उन्होंने छात्रों को यह भी बताया कि कैसे बायोइन्फॉर्मेटिक्स (Bioinformatics) और जैव सूचना प्रौद्योगिकी (Biotechnology) जैसे नए क्षेत्रों ने माइक्रोबायोलॉजी के अध्ययन को और भी दिलचस्प और प्रभावी बना दिया है। “आजकल के वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों से हम सूक्ष्मजीवों की संरचना और उनके व्यवहार को समझ सकते हैं, और इसके माध्यम से नए उपचार विकसित कर सकते हैं।”
सवाल-जवाब सत्र: छात्रों से संवाद
कक्षा प्रदर्शन के बाद डॉ. साहा ने छात्रों के साथ एक सवाल-जवाब सत्र आयोजित किया। छात्रों ने माइक्रोबायोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर सवाल किए, जैसे कि एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस, वायरल रोगों का इलाज, और जीन संपादन (Gene Editing) की संभावनाएँ। डॉ. साहा ने सभी सवालों का जवाब बड़ी विस्तार से दिया, और छात्रों को अपनी रिसर्च को गहरे से समझने के लिए प्रेरित किया।
एक छात्र ने पूछा, “क्या जीन संपादन तकनीक से हम एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को कम कर सकते हैं?” डॉ. साहा ने उत्तर दिया, “यह एक रोमांचक क्षेत्र है, और अगर हम सही तरीके से जीन संपादन का उपयोग करें, तो यह एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से निपटने के लिए एक प्रभावी रणनीति हो सकता है।”
समापन और प्रेरणा
डॉ. अर्पित कुमार साहा ने अपने व्याख्यान के समापन में छात्रों को विज्ञान में नवाचार और अन्वेषण के प्रति अपनी जिज्ञासा बनाए रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “आप जो भी कार्य करते हैं, उसे पूरी निष्ठा और उत्साह के साथ करें। हर सवाल एक नए विचार का जन्म देता है, और यही वैज्ञानिक विकास की प्रक्रिया है।”
शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के प्रिंसिपल डॉ. रवींद्रनाथ मिश्रा ने डॉ. साहा का धन्यवाद करते हुए कहा, “यह कार्यक्रम हमारे छात्रों के लिए बेहद लाभकारी था, क्योंकि उन्होंने न केवल माइक्रोबायोलॉजी के बारे में महत्वपूर्ण ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि इस क्षेत्र में नवाचार और करियर के अवसरों के बारे में भी जाना।”
यह कार्यक्रम शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज में छात्रों को माइक्रोबायोलॉजी के महत्व और इसके विकास की दिशा को समझने के लिए एक प्रेरणादायक अनुभव साबित हुआ।
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