Varahamihira: प्रस्तावना:
जब आज की आधुनिक विज्ञान और तकनीक भी भूकंप जैसे जटिल प्राकृतिक आपदा को पूरी तरह समझने की कोशिश कर रही है, तब सोचिए—अगर कोई यह कहे कि आज से १५०० साल पहले ही एक भारतीय वैज्ञानिक ने भूकंप के कारणों, संकेतों और प्रभावों को विस्तार से समझाया था? यह बात किसी चमत्कार से कम नहीं लगती। लेकिन यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि इतिहास का एक प्रामाणिक सत्य है। इस अद्भुत वैज्ञानिक का नाम था वराहमिहिर—जो न केवल ज्योतिष के क्षेत्र में अग्रणी थे, बल्कि मौसम विज्ञान, भूगर्भशास्त्र, खगोलशास्त्र और गणित में भी उन्हें अद्वितीय महारत प्राप्त थी।
🔶 वराहमिहिर कौन थे?
वराहमिहिर, 6वीं शताब्दी के एक महान भारतीय वैज्ञानिक, गणितज्ञ और ज्योतिर्विद थे। उनका जन्म उज्जैन (वर्तमान मध्य प्रदेश) में हुआ था और वे सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। उन्होंने अपने ग्रंथों ‘बृहत्संहिता’, ‘बृहतजातक’ और ‘पंचसिद्धांतिका’ के माध्यम से भारत की प्राचीन विज्ञान परंपरा को समृद्ध किया। विशेषकर ‘बृहत्संहिता’ को भारतीय विज्ञान का विश्वकोश माना जाता है।
🔶 भूकंप पर वराहमिहिर की सोच:
‘बृहत्संहिता’ के अध्याय ३२ में वराहमिहिर ने भूकंप को लेकर अद्भुत और विश्लेषणात्मक विवरण प्रस्तुत किया है। इस अध्याय में वे न केवल भूकंप के कारणों का वर्णन करते हैं, बल्कि पूर्व संकेतों, पशु-पक्षियों के व्यवहार, आकाशीय घटनाओं और भविष्यफल पर भी चर्चा करते हैं।
🔶 भूकंप के कारण: वराहमिहिर का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आज जब हम प्लेट टेक्टोनिक्स और भूपर्पटी के हलचल की बातें करते हैं, तब भी यह ध्यान देने योग्य है कि वराहमिहिर ने भी भूकंप के पीछे कुछ ठोस कारण बताए थे:
- धरती के भीतर की वायुगतिकी (Underground Air Pressure):
उन्होंने बताया कि धरती के अंदर दबे हुए वायु के अचानक मुक्त होने पर भूकंप आता है। - जल स्तर में बदलाव:
ज़मीन के नीचे जलाशयों में असंतुलन या सूख जाने से भी भूकंप की संभावना बढ़ती है। - ज्वालामुखीय हलचल:
वह मानते थे कि अग्नि तत्व के असंतुलन से भी कंपन पैदा होता है। - दैवी संकेत (Symbolic):
उन्होंने कुछ संकेतों को दैवी आपदा का रूप बताया, लेकिन वह प्रतीकात्मक थे और अनुभव पर आधारित।
यह स्पष्ट है कि वराहमिहिर का दृष्टिकोण केवल धार्मिक या ज्योतिषीय नहीं था, बल्कि प्राकृतिक कारणों पर आधारित वैज्ञानिक विवेचना थी।
🔶 “भूकंप मेघ” की अवधारणा:
सबसे अद्भुत बात यह है कि वराहमिहिर ने भूकंप मेघ का वर्णन किया है। वे बताते हैं कि भूकंप से पहले विशेष प्रकार के बादल आकाश में दिखाई देते हैं, जो सामान्य बादलों से भिन्न होते हैं। उनके आकार, रंग, गति और स्थिति में एक अनोखापन होता है।
आधुनिक विज्ञान में भी अब यह देखा गया है कि भूकंप से पहले आयोनोस्फीयर में बदलाव, विद्युत चुम्बकीय विकिरण, और कभी-कभी अप्राकृतिक प्रकाश (Earthquake lights) देखे गए हैं। इससे वराहमिहिर की बात को आधुनिक संदर्भ में भी पुष्टि मिलती है।
🔶 पशु-पक्षियों के व्यवहार पर अध्ययन:
वराहमिहिर ने कहा कि भूकंप से पहले जानवरों के व्यवहार में अचानक बदलाव देखा जाता है। पशु अजीबो-गरीब आवाजें करते हैं, स्थान बदलते हैं या भयभीत दिखाई देते हैं। यह भी आज विज्ञान में सिद्ध हो चुका है कि कई जानवर धरती के कंपन को मनुष्यों से पहले महसूस करते हैं।
🔶 भूकंप के प्रभाव और भविष्यफल:
‘बृहत्संहिता’ में यह भी बताया गया है कि किस दिशा में भूकंप होता है, उससे किस क्षेत्र पर कितना प्रभाव पड़ता है। कौन से ग्रह या नक्षत्र उस समय प्रभावी हैं, यह देख कर वह सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की भविष्यवाणी करते थे।
🔶 वराहमिहिर: प्राचीन भारतीय विज्ञान का गौरव
वराहमिहिर की लेखनी न केवल वैज्ञानिक थी, बल्कि पर्यवेक्षण (Observation), अनुभव (Experience) और तर्क (Logic) पर आधारित थी। वे किसी चमत्कार या अंधश्रद्धा के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने जितनी विस्तृत जानकारी भूकंप जैसे विषय पर दी, वह आज भी शोध का विषय है।
उनकी सोच हमें यह याद दिलाती है कि भारत का अतीत केवल मिथकों से भरा नहीं, बल्कि ज्ञान-विज्ञान की अद्भुत गहराइयों से युक्त था।
🔶 आज का संदर्भ: क्या हमने अपने ज्ञान परंपरा को भुला दिया?
जहाँ आज के वैज्ञानिक भूकंप की भविष्यवाणी के लिए सेंसर, सैटेलाइट और सुपरकंप्यूटर का सहारा ले रहे हैं, वहीं वराहमिहिर ने केवल मानव निरीक्षण, पशु व्यवहार, मौसम विज्ञान और खगोल गणना के आधार पर यह कार्य किया।
यह सोचने की बात है कि क्या हम अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा को पर्याप्त सम्मान दे रहे हैं? क्या यह जरूरी नहीं कि हम वराहमिहिर जैसे वैज्ञानिकों के कार्यों को फिर से पढ़ें, समझें और आधुनिक विज्ञान से जोड़ें?
🔶 निष्कर्ष:
वराहमिहिर केवल एक ज्योतिर्विद नहीं, बल्कि प्राचीन भारत के सच्चे वैज्ञानिक चिंतक थे। उन्होंने सिद्ध किया कि ज्ञान की कोई कालसीमा नहीं होती। उनकी भूकंप संबंधी अवधारणाएं आज के आधुनिक विज्ञान के समानांतर खड़ी होती हैं, और कई मामलों में उन्हें आगे भी ले जाती हैं।
भारत को चाहिए कि वह अपने ऐसे प्राचीन वैज्ञानिक धरोहरों को न केवल सम्मान दे, बल्कि उन्हें शोध और पाठ्यक्रम में शामिल कर नई पीढ़ी को उनके योगदान से परिचित कराए।
क्योंकि भविष्य के विज्ञान की दिशा अक्सर अतीत के दीपक से ही प्रकाशित होती है।
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