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सलुमारादा थिमक्का: ‘भारत की वृक्ष-माता’ की हरियाली से लिपटी जीवंत प्रेरणा

Salumarada Thimmakka: जब दुनिया भर में जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण प्रकृति कराह उठी, तब कर्नाटक की एक साधारण महिला ने अपने हाथों से धरती को हरियाली की चादर ओढ़ा दी। वह महिला हैं सलुमारादा थिमक्का, जिनकी उम्र अब 112 वर्ष से भी अधिक, लेकिन उनका नाम আজ भी उतना-ই प्रासंगिक—’भारत की वृक्ष-माता’ के रूप में। उनका जीवन सिर्फ वृक्षारोपण नहीं, बल्कि समर्पण, संघर्ष और प्रकृति प्रेम का एक अद्वितीय उदाहरण है।

वृक्ष नहीं, संतान हैं

थिमक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुब्बी तालुक में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उनका बचपन आर्थिक तंगी और शिक्षा से वंचित रहकर बीता। विवाह के बाद जब संतान का सुख नसीब नहीं हुआ, तो उन्होंने जीवन की उस खाली जगह को हरियाली से भरने का निश्चय किया।

अपने पति चिन्ना के साथ मिलकर उन्होंने एक मिशन की शुरुआत की—सड़क किनारे बरगद के पेड़ लगाना। शुरुआत हुई मात्र 15 पौधों से, जिन्हें वे अपने हाथों से पानी देतीं, गोबर से खाद बनाकर डालतीं और कांटों से उन्हें पशुओं से बचातीं। रोज़ाना कई किलोमीटर की पैदल यात्रा कर वे इन पेड़ों की सेवा करतीं। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई और आज वह 384 से अधिक बरगद के वृक्षों की माता बन चुकी हैं।

‘सलुमारादा’—नाम जो बन गया पहचान

थिमक्का को ‘सलुमारादा’ नाम इसलिए मिला क्योंकि ‘सलु’ का मतलब होता है पंक्ति या कतार और ‘मरादा’ का अर्थ है वृक्ष। यानी ‘वृक्षों की कतार’। यह नाम सिर्फ उनकी मेहनत का प्रतीक नहीं, बल्कि आज पर्यावरण आंदोलन की एक गूंज बन चुका है।

संघर्ष और तपस्या की मिसाल

थिमक्का का जीवन आसान नहीं था। न पैसों का सहारा, न सरकारी योजना, न कोई सामाजिक सहयोग। उन्होंने और उनके पति ने अपनी मजदूरी की कमाई से यह हरित इतिहास रचा। 1991 में उनके पति की मृत्यु के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अकेले दम पर पेड़ लगाना और उनकी देखभाल जारी रखी।

आज वह 8000 से अधिक पेड़ों की मां हैं। उनकी देखभाल में उन्होंने वही ममता दिखाई जो एक मां अपने बच्चों के लिए दिखाती है—वर्षा, धूप, बीमारी, भूख—किसी चीज़ ने उन्हें पेड़ों की सेवा से नहीं रोका।

जब सरकार झुकी एक मां की आंसुओं के आगे

2019 में कर्नाटक सरकार ने हलागुरु रोड के चौड़ीकरण की योजना बनाई, और उस रास्ते पर स्थित 385 बरगद के पेड़ों को काटने की योजना बनी—वे वही पेड़ थे जिन्हें थिमक्का ने अपने हाथों से लगाया था। जैसे ही यह खबर फैली, पूरे राज्य में विरोध शुरू हो गया। थिमक्का की आंखों में आंसू थे, लेकिन उन आंसुओं ने करोड़ों दिलों को झकझोर दिया। अंततः सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा और पेड़ बचा लिए गए।

यह घटना दिखाती है कि अगर भावना सच्ची हो, तो नीतियां भी झुक जाती हैं।

सम्मान और प्रसिद्धि, फिर भी जमीन से जुड़ीं

थिमक्का को भारत सरकार द्वारा 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, वृक्ष मित्र पुरस्कार, यूनाइटेड नेशंस एन्वायर्नमेंटल अवॉर्ड, और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

उनकी संपत्ति करोड़ों में पहुंच चुकी है, लेकिन वह आज भी एक बेहद सादा जीवन जीती हैं। न कोई कोठी, न विदेशी दौरे—वह अब भी वृक्षों की छांव में बैठती हैं, और उन्हें प्यार से निहारती हैं जैसे कोई मां अपने बच्चों को देखती है।

वृक्ष हैं जीवन, वृक्ष हैं भविष्य

थिमक्का हमेशा कहती हैं—“एक पेड़, सौ जीवन।” जब आज पूरा विश्व ग्लोबल वॉर्मिंग, समुद्र का बढ़ता जलस्तर, और जंगलों की आग की समस्या से जूझ रहा है, तब थिमक्का जैसी महिलाएं हमें सिखाती हैं कि इस संकट से निकलने का रास्ता भी प्रकृति में ही है।

उन्होंने कभी भाषण नहीं दिए, न ही कोई मंच मांगा। उनका जीवन ही उनका संदेश है।

विश्व के लिए एक प्रतीक

आज यदि विश्व पर्यावरण दिवस पर किसी एक नाम को सबसे पहले याद किया जाना चाहिए, तो वह सलुमारादा थिमक्का हैं। उन्होंने दिखा दिया कि बदलाव लाने के लिए आपको सरकार, संगठन या प्रचार की जरूरत नहीं—जरूरत है समर्पण, ममता और निरंतर प्रयास की।

उनका योगदान यह दर्शाता है कि एक आम महिला भी, जो न पढ़ी-लिखी है, न प्रभावशाली, वह भी पृथ्वी को बचाने की दिशा में अद्भुत कार्य कर सकती है।

सलुमारादा थिमक्का: एक जीवंत प्रेरणा

थिमक्का न सिर्फ भारत की, बल्कि पूरी दुनिया की ‘वृक्ष-माता’ बन चुकी हैं। उन्होंने हमें सिखाया कि—

  • पर्यावरण संरक्षण किसी और का काम नहीं, हम सबकी जिम्मेदारी है
  • अगर कोई इच्छा हो, तो संसाधनों की कमी भी रुकावट नहीं बनती
  • प्रकृति से प्यार करके हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य दे सकते हैं

अंतिम पंक्तियाँ

सलुमारादा थिमक्का की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं, लेकिन यह पूरी तरह सच्ची, साधारण और सजीव है। उन्होंने हमें यह सिखाया कि बदलाव केवल भाषणों और घोषणाओं से नहीं आता, बल्कि एक-एक पेड़ लगाकर, एक-एक बूंद पानी देकर, मूक सेवा से आता है।

थिमक्का आज न सिर्फ भारत का गौरव हैं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा हैं।

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