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प्लास्टिक खाने वाला फंगस! पूर्वी घाट के जंगलों में भारत के वैज्ञानिकों की क्रांतिकारी खोज

Plastic-Eating Fungus: प्लास्टिक प्रदूषण, जो आज पूरे विश्व के लिए सबसे गंभीर पर्यावरणीय संकट बन चुका है, उसके समाधान की दिशा में भारत के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी छलांग लगाई है। भारत के भूवैज्ञानिक वैज्ञानिकों ने हाल ही में पूर्वी घाट के घने और जैव-विविधता से भरपूर जंगलों में एक ऐसी फंगस प्रजाति की खोज की है, जो प्लास्टिक को खा सकती है और उसे प्राकृतिक रूप से नष्ट कर सकती है। यह खोज न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए उम्मीद की किरण मानी जा रही है।

पृष्ठभूमि: प्लास्टिक संकट की गंभीरता

प्लास्टिक एक ऐसी कृत्रिम सामग्री है, जिसे सैकड़ों वर्षों तक प्राकृतिक रूप से नष्ट करना लगभग असंभव होता है। हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा समुद्र, नदियों और जमीन में जमा हो रहा है, जो न केवल वन्यजीवों बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। भारत में भी प्रतिवर्ष करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा खुले में पड़ा रह जाता है या जलस्रोतों में चला जाता है।

इसी चुनौती के समाधान की तलाश में, भारत के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पूर्वी घाट के जंगलों में एक अनुसंधान अभियान शुरू किया। इस अभियान का उद्देश्य मिट्टी और वनस्पतियों के नमूनों का अध्ययन करना था, ताकि ऐसे सूक्ष्मजीवों की पहचान की जा सके जो प्लास्टिक जैसे जटिल पॉलिमर को तोड़ सकें।

कैसे मिली यह अद्भुत खोज

अनुसंधान दल का नेतृत्व डॉ. अनिरुद्ध बंद्योपाध्याय कर रहे थे, जो सूक्ष्मजीव-आधारित जैव-अपघटन तकनीकों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बताया कि अभियान के दौरान एक सूखे पत्ते पर चिपकी पतली प्लास्टिक फिल्म असामान्य रूप से क्षतिग्रस्त दिखी। नमूने को माइक्रोस्कोप से देखने पर पाया गया कि उस पर रुई जैसी सफेद परत जमी हुई है, जो वास्तव में एक फंगस थी।

इस फंगस को प्रयोगशाला में अलग कर नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया गया। परिणाम चौंकाने वाले थे— यह फंगस पॉलीथीन और पॉलीप्रोपाइलीन, दोनों तरह के प्लास्टिक को धीरे-धीरे विघटित करने में सक्षम पाई गई।

वैज्ञानिक विश्लेषण

परीक्षणों में पाया गया कि यह फंगस विशेष प्रकार के एंजाइम (जैसे पॉलीइथिलिनेज और पॉलीप्रोपाइलीनेज) का उत्पादन करती है, जो प्लास्टिक के लंबे पॉलिमर चेन को तोड़कर छोटे, सरल यौगिकों में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया को बायोडिग्रेडेशन कहा जाता है।

नियंत्रित परिस्थितियों में, इस फंगस ने मात्र 45 दिनों में पतली पॉलीथीन बैग का लगभग 50% हिस्सा तोड़ दिया। यह आंकड़ा वैश्विक शोध मानकों के अनुसार अत्यंत आशाजनक है।

इस खोज का महत्व

  1. पर्यावरण संरक्षण में क्रांति – यह फंगस प्लास्टिक कचरे को प्राकृतिक और सुरक्षित तरीके से नष्ट कर सकती है।
  2. औद्योगिक उपयोग की संभावना – अपशिष्ट प्रबंधन उद्योग में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग संभव है।
  3. कम लागत वाला समाधान – रासायनिक रीसाइक्लिंग की तुलना में यह प्रक्रिया कहीं अधिक सस्ती है।
  4. जैव विविधता का महत्व – यह खोज दिखाती है कि जंगलों की जैव विविधता संरक्षित करना भविष्य के पर्यावरण समाधान के लिए कितना आवश्यक है।

चुनौतियां और सीमाएं

हालांकि यह खोज अभूतपूर्व है, लेकिन वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि इसे व्यावहारिक रूप से लागू करने से पहले और अनुसंधान जरूरी है।

  • फंगस की वृद्धि दर
  • प्राकृतिक वातावरण में इसकी कार्यक्षमता
  • बड़े पैमाने पर उत्पादन और भंडारण की तकनीक
    इन सभी पहलुओं पर अभी गहन अध्ययन जारी है।

साथ ही, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि यह फंगस अनजाने में उन वस्तुओं को नुकसान न पहुंचाए जिनमें प्लास्टिक का संरचनात्मक रूप से महत्वपूर्ण उपयोग होता है, जैसे बिजली के तारों की इन्सुलेशन या सुरक्षा उपकरण।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस खोज को लेकर वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में उत्साह है। अमेरिका, यूरोप और जापान के कई शोध संस्थानों ने संयुक्त अनुसंधान में रुचि दिखाई है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने भी इस खोज की प्रारंभिक रिपोर्ट मंगवाई है और इसे वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं में शामिल करने पर विचार कर रहा है।

पूर्वी घाट: संभावनाओं का खजाना

पूर्वी घाट के जंगल अपनी अद्वितीय जैव विविधता के लिए जाने जाते हैं। यहां कई दुर्लभ और अज्ञात जीव-जंतु, पौधे और सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की खोजें साबित करती हैं कि प्रकृति के हर हिस्से में समाधान छिपा है— बस हमें उसे ढूंढना और बचाना है।

सामान्य नागरिकों की भूमिका

भले ही वैज्ञानिक खोजें समस्या के समाधान का रास्ता खोलती हैं, लेकिन प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में आम लोगों की भूमिका भी अहम है। पुन: उपयोग होने वाले बैग का इस्तेमाल, एकल-उपयोग प्लास्टिक से परहेज, और कचरे का सही निपटान— ये सभी आदतें इस संकट को कम करने में मदद कर सकती हैं।

भविष्य की दिशा

डॉ. अनिरुद्ध और उनकी टीम अब इस फंगस के जीनोम का विश्लेषण कर रहे हैं, ताकि इसके एंजाइम उत्पादन की क्षमता को बढ़ाया जा सके। भविष्य में, इस फंगस को ‘बायो-रिएक्टर’ में उगाकर औद्योगिक स्तर पर प्लास्टिक विघटन की प्रक्रिया शुरू करने की योजना है। यदि यह योजना सफल होती है, तो आने वाले दशकों में प्लास्टिक प्रदूषण को बड़े पैमाने पर नियंत्रित किया जा सकता है।

पूर्वी घाट के घने जंगलों से मिली यह छोटी-सी फंगस प्रजाति शायद एक दिन दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषण संकट का समाधान बन जाए। यह खोज हमें याद दिलाती है कि प्रकृति के पास अपनी समस्याओं के समाधान मौजूद हैं, बस हमें धैर्य और समर्पण के साथ उन्हें तलाशना होगा।

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