Mettur Dam: भारत की धरती न केवल अपनी प्राकृतिक संपदा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इंजीनियरिंग और विज्ञान के अद्भुत नमूनों के लिए भी जानी जाती है। दक्षिण भारत में स्थित मेट्टूर डैम ऐसा ही एक स्मारक है, जो आज भी तमिलनाडु के कृषि, ऊर्जा और पर्यटन का आधार स्तंभ माना जाता है। कावेरी नदी पर बने इस बाँध ने लगभग एक सदी से राज्य के विकास की धारा को दिशा दी है।
निर्माण की कहानी : नौ वर्षों की मेहनत
मेट्टूर डैम का निर्माण कार्य वर्ष १९२५ में शुरू हुआ। उस दौर में इतनी विशाल संरचना खड़ी करना किसी सपने से कम नहीं था। लगातार नौ वर्षों की कठिन मेहनत और तकनीकी चुनौतियों को पार करते हुए अंततः १९३४ में इस बाँध का उद्घाटन किया गया। उस समय यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक थी।
मेट्टूर डैम का उद्घाटन केवल एक बाँध के उद्घाटन तक सीमित नहीं था; यह तमिलनाडु के भविष्य के लिए नए युग का आरंभ था।
संरचना और विशेषताएँ
मेट्टूर डैम को उसकी विशालता और मजबूती के कारण “इंजीनियरिंग का चमत्कार” कहा जाता है।
- ऊँचाई: लगभग २१४ फीट
- चौड़ाई: लगभग १७१ फीट
- लंबाई: करीब ५,३०० फीट (लगभग १.६ किलोमीटर)
- जलाशय: जिसे स्टैनली रिज़र्वायर कहा जाता है, जो लगभग ९० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
इतने बड़े क्षेत्रफल में फैला यह जलाशय लाखों लोगों के जीवन, कृषि और अर्थव्यवस्था से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है।
कृषि में योगदान : जीवनदायिनी धारा
मेट्टूर डैम का सबसे बड़ा योगदान तमिलनाडु की कृषि भूमि को जीवन देना है। विशेषकर कावेरी डेल्टा क्षेत्र इसकी सिंचाई व्यवस्था से सबसे अधिक लाभान्वित होता है। धान, गन्ना, कपास और विभिन्न प्रकार की दालों की खेती इस बाँध से मिलने वाले पानी पर निर्भर है।
किसानों का कहना है कि यदि मेट्टूर डैम न होता तो कावेरी डेल्टा की उपजाऊ भूमि आज भी बंजर पड़ी रहती। यह बाँध न केवल फसलों को पानी देता है, बल्कि अनिश्चित वर्षा के समय लाखों किसानों की सुरक्षा कवच बन जाता है।
बिजली उत्पादन : ऊर्जा का स्रोत
मेट्टूर डैम केवल सिंचाई तक सीमित नहीं है। यहाँ स्थापित जलविद्युत परियोजना तमिलनाडु को निरंतर बिजली आपूर्ति करती है। राज्य की औद्योगिक इकाइयाँ और शहरी क्षेत्र इस परियोजना से सीधे लाभान्वित होते हैं।
पुनर्नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मेट्टूर डैम का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल पर्यावरण हितैषी है बल्कि ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी राज्य को मजबूती प्रदान करता है।
पेयजल का प्रमुख स्रोत
तमिलनाडु के कई छोटे-बड़े शहर और गाँव आज भी अपने पेयजल की ज़रूरतों के लिए मेट्टूर डैम पर निर्भर हैं। बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के दौर में इस बाँध की महत्ता और बढ़ गई है। भविष्य में जल संकट की समस्या को देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि मेट्टूर डैम की भूमिका और भी अहम हो जाएगी।
मत्स्य पालन : अर्थव्यवस्था की नई धारा
स्टैनली रिज़र्वायर केवल सिंचाई और ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है। यहाँ मत्स्य पालन की भी व्यापक संभावनाएँ विकसित हुई हैं। विभिन्न प्रकार की मछलियों की पैदावार स्थानीय लोगों की आय का बड़ा स्रोत बन चुकी है। हजारों परिवार सीधे तौर पर इस व्यवसाय से जुड़े हैं और यह बाँध स्थानीय अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देता है।
पर्यटन का आकर्षण
मेट्टूर डैम अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विशालता के कारण पर्यटकों को भी आकर्षित करता है। विशेष रूप से मानसून के मौसम में जब जलाशय लबालब भर जाता है, तब इसका दृश्य अत्यंत मनमोहक हो जाता है। बाँध के आसपास बने उद्यान, पिकनिक स्पॉट और दर्शनीय स्थल इसे तमिलनाडु का लोकप्रिय पर्यटन केंद्र बना देते हैं।
पर्यावरणीय महत्व
इतना विशाल जलाशय आसपास के क्षेत्र की जलवायु और नमी को संतुलित बनाए रखने में सहायक है। साथ ही यह क्षेत्र अनेक पक्षियों और जलीय जीवों का आश्रय स्थल भी है। पर्यावरणविदों के अनुसार, मेट्टूर डैम केवल मानव जीवन के लिए ही नहीं बल्कि जैव विविधता की रक्षा के लिए भी उतना ही आवश्यक है।
वर्तमान चुनौतियाँ
आज भले ही मेट्टूर डैम तमिलनाडु का गौरव है, लेकिन समय के साथ कई चुनौतियाँ भी सामने आई हैं।
- कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर पड़ोसी राज्यों के साथ विवाद
- अनियमित वर्षा और जलवायु परिवर्तन की वजह से जल प्रवाह पर असर
- बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक गतिविधियों के कारण जल पर दबाव
इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आधुनिक जल प्रबंधन तकनीक अपनाना समय की ज़रूरत है।
मेट्टूर डैम केवल एक बाँध नहीं, बल्कि तमिलनाडु की जीवन रेखा है। कृषि, ऊर्जा, पेयजल, मत्स्य पालन और पर्यटन—हर क्षेत्र में इस बाँध का योगदान अद्वितीय है। लगभग एक सदी पहले निर्मित यह बाँध आज भी उतना ही प्रासंगिक है और यह प्रमाण है कि सही योजना और इंजीनियरिंग से पीढ़ियों तक विकास संभव है।
तमिलनाडु के लोगों के लिए मेट्टूर डैम गर्व और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। वास्तव में इसे “दक्षिण भारत की धड़कन” कहा जाना बिल्कुल उचित है।
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