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शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में ‘कोलिनर्जिक मेडिसिन: फार्माकोलॉजी’ पर डॉ. अनलज्योति घोष का व्याख्यान

Lecture on Cholinergic Medicine: शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल एक अत्यधिक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसका विषय था “कोलिनर्जिक मेडिसिन: फार्माकोलॉजी”। यह व्याख्यान चिकित्सा के क्षेत्र में एक प्रमुख विशेषज्ञ, डॉ. अनलज्योति घोष द्वारा दिया गया। डॉ. घोष ने इस सत्र में कोलिनर्जिक प्रणाली और उसके चिकित्सा अनुप्रयोगों को विस्तार से समझाया और छात्रों को फार्माकोलॉजी के इस क्षेत्र में गहरी समझ प्रदान की।

कोलिनर्जिक प्रणाली का परिचय

कोलिनर्जिक प्रणाली शरीर के तंत्रिका तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो मुख्य रूप से एसीटाइलकोलाइन (Acetylcholine) नामक न्यूरोट्रांसमीटर का उपयोग करता है। यह तंत्रिका तंत्र के कई महत्वपूर्ण कार्यों को नियंत्रित करता है, जैसे दिल की धड़कन, मांसपेशियों की गति, श्वसन क्रियाएँ, और पाचन क्रिया। डॉ. घोष ने व्याख्यान की शुरुआत करते हुए कहा, “कोलिनर्जिक प्रणाली का अध्ययन न केवल फार्माकोलॉजी के छात्रों के लिए, बल्कि चिकित्सकों के लिए भी आवश्यक है क्योंकि यह प्रणाली हमारे शरीर के कई महत्वपूर्ण कार्यों को प्रभावित करती है।”

उन्होंने यह भी बताया कि कोलिनर्जिक प्रणाली में कोई भी असंतुलन या विकृति विभिन्न रोगों का कारण बन सकती है, जैसे कि अल्जाइमर रोग, मायस्थेनिया ग्रेविस, ग्लूकोमा, और पेरालिसिस जैसी बीमारियाँ। इन बीमारियों के इलाज के लिए कोलिनर्जिक दवाओं का सही उपयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कोलिनर्जिक ड्रग्स: वर्गीकरण और चिकित्सा उपयोग

कोलिनर्जिक ड्रग्स को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: कोलिनोमेटिक ड्रग्स और एंटीकोलिनर्जिक ड्रग्स।

  1. कोलिनोमेटिक ड्रग्स: ये दवाएँ शरीर में एसीटाइलकोलाइन के प्रभावों को बढ़ाती हैं। इनका उपयोग विशेष रूप से अल्जाइमर रोग, मायस्थेनिया ग्रेविस, और ग्लूकोमा के इलाज में किया जाता है। डॉ. घोष ने उदाहरण के तौर पर नियोस्टिगमिन और पायरीडोस्टिगमिन का जिक्र किया, जो मायस्थेनिया ग्रेविस रोग में मांसपेशियों की कमजोरी को ठीक करने के लिए उपयोगी हैं। इसी तरह, पाइलोकार्पिन को ग्लूकोमा के इलाज में प्रयोग किया जाता है, जो आंखों के दबाव को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  2. एंटीकोलिनर्जिक ड्रग्स: यह दवाएँ कोलिनर्जिक प्रभावों को कम करती हैं और उनका उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जब कोलिनर्जिक प्रणाली अत्यधिक सक्रिय हो जाती है। उदाहरण स्वरूप, एट्रोपिन और स्कोपोलामिन जैसी दवाएँ पाचन तंत्र की समस्याओं, ऑपरेशन के दौरान शरीर की गति को नियंत्रित करने और श्वसन तंत्र के विकारों के इलाज में मदद करती हैं।

कोलिनर्जिक रिसेप्टर्स और उनके कार्य

कोलिनर्जिक प्रणाली के दो प्रमुख रिसेप्टर प्रकार होते हैं: निको्टिनिक रिसेप्टर्स और मस्केरिनिक रिसेप्टर्स

  • निको्टिनिक रिसेप्टर्स: यह रिसेप्टर्स तंत्रिका तंत्र के तंतु-तंतु के संपर्क स्थल पर स्थित होते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में तंत्रिका संदेशों के संचार को नियंत्रित करते हैं। ये रिसेप्टर्स मांसपेशियों की गति और तंत्रिका-मांसपेशी संयोजनों को प्रभावित करते हैं।
  • मस्केरिनिक रिसेप्टर्स: ये रिसेप्टर्स शरीर के विभिन्न अंगों, जैसे हृदय, श्वसन तंत्र, और पाचन तंत्र में पाए जाते हैं। ये रिसेप्टर्स शरीर के इन अंगों में सूजन, गति, और कार्यों को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं।

डॉ. घोष ने इन रिसेप्टर्स के कामकाजी तंत्र को विस्तार से समझाया और बताया कि कोलिनर्जिक दवाएँ इन रिसेप्टर्स पर अपना प्रभाव डालकर शरीर के विभिन्न कार्यों को प्रभावित करती हैं।

कोलिनर्जिक दवाओं के प्रभाव और उनके दुष्प्रभाव

कोलिनर्जिक दवाओं के प्रभावों के बारे में भी डॉ. घोष ने विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि कोलिनोमेटिक दवाएँ जहां शरीर में एसीटाइलकोलाइन के प्रभाव को बढ़ाती हैं, वहीं एंटीकोलिनर्जिक दवाएँ इन प्रभावों को कम करती हैं।

हालांकि, इन दवाओं के उपयोग से कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, नियोस्टिगमिन जैसी दवाएँ मायस्थेनिया ग्रेविस के इलाज में मदद करती हैं, लेकिन इनके अत्यधिक सेवन से उल्टी, दस्त, और मांसपेशियों में ऐंठन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। इसी तरह, एंटीकोलिनर्जिक दवाएँ जैसे एट्रोपिन और स्कोपोलामिन का उपयोग भी ध्यान से करना होता है क्योंकि ये दवाएँ हृदय गति को तेज कर सकती हैं और कभी-कभी चक्कर और भ्रम जैसी समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं |

और पढ़ें: शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में होने वाली जैव रसायन चर्चाओं पर एक लेख

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