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शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉ. नम्रता चट्टोपाध्याय द्वारा बायोकेमिस्ट्री पर कक्षा प्रस्तुति

Class presentation: शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक बायोकेमिस्ट्री पर कक्षा प्रस्तुति का आयोजन किया गया, जिसे प्रसिद्ध बायोकेमिस्ट और शिक्षिका डॉ. नम्रता चट्टोपाध्याय ने दिया। इस सत्र का उद्देश्य बायोकेमिस्ट्री के मूल सिद्धांतों को मेडिकल छात्रों के लिए आसान और व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत करना था। डॉ. चट्टोपाध्याय का यह व्याख्यान मेडिकल छात्रों, फैकल्टी और अस्पताल के चिकित्सकों के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक और उपयोगी रहा।

बायोकेमिस्ट्री का महत्व

डॉ. चट्टोपाध्याय ने अपनी कक्षा की शुरुआत बायोकेमिस्ट्री के महत्व को समझाने से की। उन्होंने बताया कि बायोकेमिस्ट्री जैविक प्रणालियों के रासायनिक और आणविक कार्यों का अध्ययन करती है। यह शरीर के अंदर होने वाली सभी जैविक प्रक्रियाओं को समझने में सहायक होती है, जो कि रोगों के निदान, उपचार और रोकथाम में अहम भूमिका निभाती हैं। उन्होंने कहा, “बायोकेमिस्ट्री न केवल एक जीवविज्ञान की शाखा है, बल्कि यह मेडिकल विज्ञान का आधार है, जो हमें शरीर के रासायनिक कार्यों को समझने में मदद करती है।”

डॉ. चट्टोपाध्याय ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना बायोकेमिस्ट्री की समझ के चिकित्सा क्षेत्र में कोई भी उपचार या निदान अधूरा रहेगा। शरीर के कोशिकाओं में होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं को समझे बिना हम यह नहीं जान सकते कि किसी बीमारी के पीछे का कारण क्या है और उसे ठीक कैसे किया जा सकता है।

कक्षा में चर्चा किए गए प्रमुख विषय

डॉ. चट्टोपाध्याय ने बायोकेमिस्ट्री के कुछ प्रमुख और महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की, जो न केवल मेडिकल छात्रों के लिए, बल्कि चिकित्सकीय अभ्यास में आने वाले हर व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। कक्षा में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा की गई:

  1. ऊर्जा उत्पादन के लिए मेटाबोलिज़्म
    डॉ. चट्टोपाध्याय ने मेटाबोलिज़्म के बारे में बात की, जो शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करने की प्रक्रिया है। उन्होंने बताया कि कैसे शरीर भोजन से पोषक तत्वों को संसाधित करके ऊर्जा प्राप्त करता है। उन्होंने ग्लाइकोलाइसिस, सिट्रिक एसिड साइकिल और ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरीलेशन जैसे महत्वपूर्ण मेटाबोलिक मार्गों का उल्लेख किया। इन प्रक्रियाओं की समझ से चिकित्सक यह जान सकते हैं कि किसी व्यक्ति की ऊर्जा की आपूर्ति में क्या गड़बड़ी हो सकती है, जैसे डायबिटीज या मोटापे जैसी बीमारियाँ।
  2. एंजाइम फंक्शन और नियंत्रण
    डॉ. चट्टोपाध्याय ने एंजाइमों के बारे में बताया, जो शरीर के रासायनिक कार्यों को गति देने में मदद करते हैं। उन्होंने समझाया कि एंजाइमों का कार्य कैसे नियंत्रित होता है, और कैसे यह प्रतिक्रिया की गति को प्रभावित करता है। उन्होंने एंजाइमों के काइनेटिक्स को भी समझाया, जैसे माइकेलिस-मेंटेन थ्योरी, जो यह बताती है कि कैसे एंजाइम सब्सट्रेट के साथ जुड़ते हैं और रासायनिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं।”एंजाइमों की सही कार्यप्रणाली का ज्ञान चिकित्सकों के लिए आवश्यक है, क्योंकि कई दवाएँ, जैसे स्टैटिन या एसीई इनहिबिटर्स, विशेष एंजाइमों को लक्षित करके काम करती हैं,” डॉ. चट्टोपाध्याय ने बताया।
  3. जैविक प्रक्रिया और आनुवंशिकी
    डॉ. चट्टोपाध्याय ने आनुवंशिकी और जैविक प्रक्रिया के आपसी संबंध पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि कैसे आनुवंशिक उत्परिवर्तन शरीर में रासायनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, जिससे विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के रूप में, उन्होंने सिकल सेल एनीमिया, सीस्ट्रिक फाइब्रोसिस, और टे सैक्स रोग की व्याख्या की, जिनमें विशेष आनुवंशिक म्यूटेशंस के कारण बायोकेमिकल प्रक्रियाएँ प्रभावित होती हैं।उन्होंने यह भी बताया कि जैविक परीक्षणों के माध्यम से अब हम आनुवंशिक विकारों का पता लगा सकते हैं और व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ तैयार कर सकते हैं।
  4. हॉर्मोनल नियंत्रण और जैव रसायन
    कक्षा में हॉर्मोनल नियंत्रण पर भी चर्चा की गई। डॉ. चट्टोपाध्याय ने समझाया कि शरीर के विभिन्न हॉर्मोन जैसे इंसुलिन, थायरॉयड हॉर्मोन, और कोर्टिसोल मेटाबोलिक प्रक्रियाओं को कैसे नियंत्रित करते हैं और शरीर को विभिन्न परिवर्तनों के लिए तैयार करते हैं। हॉर्मोनल असंतुलन के कारण होने वाले रोगों, जैसे हाइपोथायरायडिज़म, डायबिटीज़, और ऐडिसन रोग, की चर्चा की गई।”हॉर्मोनल प्रक्रियाओं की जैव रसायन प्रक्रिया को समझना चिकित्सकों के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि हॉर्मोनल असंतुलन से उत्पन्न होने वाले रोगों का निदान और उपचार इसके बिना संभव नहीं हो सकता,” डॉ. चट्टोपाध्याय ने कहा।
  5. क्लिनिकल डाइग्नोसिस में बायोकेमिस्ट्री की भूमिका
    डॉ. चट्टोपाध्याय ने यह भी बताया कि बायोकेमिस्ट्री कैसे क्लिनिकल डाइग्नोसिस में मदद करती है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से बायोकेमिकल टेस्ट जैसे लिवर फंक्शन टेस्ट, किडनी फंक्शन टेस्ट, ब्लड ग्लूकोज लेवल, और लिपिड प्रोफाइल रोगों के निदान में सहायक होते हैं। उन्होंने बताया कि इन परीक्षणों से हम न केवल रोग का पता लगा सकते हैं, बल्कि उसका इलाज भी सही समय पर कर सकते हैं।”बायोकेमिकल परीक्षणों से रोग का शीघ्र निदान होने पर बेहतर उपचार संभव हो पाता है,” डॉ. चट्टोपाध्याय ने उदाहरण देकर समझाया।

विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी

कक्षा में छात्रों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे। छात्रों ने बायोकेमिस्ट्री के सिद्धांतों को चिकित्सकीय अभ्यास में कैसे लागू किया जा सकता है, इस पर चर्चा की। एक छात्र ने न्यूरोडिजेनेरेटिव रोगों जैसे अल्जाइमर के बारे में पूछा, तो डॉ. चट्टोपाध्याय ने उन्हें बताया कि कैसे बायोकेमिकल मार्कर और प्रोटीन का संचय इन बीमारियों का पता लगाने में मदद करता है।

संकाय और प्रशासन की प्रतिक्रियाएँ

संतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के संकाय और प्रशासन ने भी इस कक्षा को सराहा। डॉ. पंकज रॉय, कॉलेज के डीन, ने कहा, “बायोकेमिस्ट्री मेडिकल शिक्षा का अभिन्न हिस्सा है और डॉ. चट्टोपाध्याय का व्याख्यान छात्रों को बायोकेमिस्ट्री के वास्तविक अनुप्रयोगों को समझने में मदद करेगा।” अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ. रत्ना भट्टाचार्य ने भी इस सत्र की सराहना की और कहा, “बायोकेमिस्ट्री न केवल एक सिद्धांत है, बल्कि यह हमारे रोजमर्रा के चिकित्सकीय कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।”

डॉ. नम्रता चट्टोपाध्याय का बायोकेमिस्ट्री पर दिया गया यह व्याख्यान संतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के छात्रों के लिए अत्यधिक लाभकारी साबित हुआ। इस कक्षा ने न केवल छात्रों को बायोकेमिस्ट्री के सिद्धांतों को समझने में मदद की, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे ये सिद्धांत वास्तविक चिकित्सकीय कार्यों में उपयोगी हो सकते हैं। यह सत्र छात्रों को यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि बायोकेमिस्ट्री सिर्फ एक अकादमिक विषय नहीं है, बल्कि यह चिकित्सा क्षेत्र में सफलता पाने के लिए एक बुनियादी उपकरण है।

और पढ़ें: शांतिनिकेतन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में फार्माकोलॉजी

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