Asansol’s Namesake Tree: “नहीं ‘आसान’ वृक्ष का जलकुंभी, रूखा मेरी जन्मभूमि…फिर भी नोकरी-रामकृष्ण राय सिर पर हैं”। आसनसोल शहर पर लिखे एक गीत की पहली दो पंक्तियाँ। हाँ, गीत में आया है, कवि की कविता में आया है, शोधकर्ताओं की किताबों में इस ‘आसान’ वृक्ष का नाम आया है। इसी से ‘आसनसोल’ नाम पड़ा।
‘आसन+सोल’ – ‘सोल’ का अर्थ है मिट्टी या भूमि। यानी आसान शब्दों में कहें तो वह भूमि जहाँ ढेर सारे ‘आसान’ वृक्ष पाए जाते हैं। लेकिन जिस वृक्ष के नाम पर पूरा शहर जाना जाता है, वही वृक्ष अब इस शहर में दिखाई नहीं देता। इक्का-दुक्का ही बचे हैं। इसी वृक्ष को वापस लाने के लिए आसनसोल के बनवारीलाल भालोटिया कॉलेज (बीबी कॉलेज) ने एक अनूठी पहल की है।
बीबी कॉलेज के बॉटनी विभाग और एनएसएस के छात्रों के अथक प्रयास से पाँच हज़ार ‘आसान’ वृक्ष के पौधे तैयार किए गए हैं, जिन्हें आसनसोल शहर के विभिन्न हिस्सों में लगाया जाएगा।
आसनसोल का संक्षिप्त इतिहास
लोककथा है कि एक बार ‘आसान’ वृक्ष के जंगल को काटकर उग्रे क्षत्रिय श्वसुर-दामाद नोकरी राय और रामकृष्ण राय ने अपना निवास स्थान बनाया था। उन्होंने इसका नाम ‘आसनसोल ग्राम’ रखा। उस ‘आसनसोल ग्राम’ या नोकरी और रामकृष्ण राय के वंशज आज भी एक बड़े क्षेत्र में मौजूद हैं। हालांकि, शोधकर्ताओं का दावा है कि ‘आसनसोल ग्राम’ बनने से पहले भी आसनसोल क्षेत्र में कई गाँव बन चुके थे या उससे भी पुराने जनपदों के प्रमाण मिले हैं। इसलिए, यह निश्चित नहीं है कि ‘आसनसोल ग्राम’ से ही पूरे क्षेत्र का नाम ‘आसनसोल’ पड़ा है।
बाद में, रानीगंज के नारायणकुड़ी गाँव में कोयला खनन शुरू हुआ। प्रिंस द्वारकानाथ टैगोर के प्रयासों से कोयला खनन शुरू हुआ और इस कोयले के परिवहन के लिए पहली बार रानीगंज तक रेलवे लाइन बिछाई गई। बाद में यह आसनसोल तक आई और आसनसोल में ईस्ट इंडिया रेल कंपनी का रेलवे डिवीजन बना। रेलवे आने के बाद आसनसोल में नागरिक सभ्यता विकसित हुई। रेलवे में कार्यरत ब्रिटिश इस शहर के निवासी बनने लगे। धीरे-धीरे, अर्मेनियाई और अन्य व्यापारी भी अंग्रेजों के साथ आसनसोल आने लगे। आधुनिक नागरिक सभ्यता का विकास हुआ।
दूसरी ओर, बर्नपुर और कुलटी में सर राजेंद्रनाथ मुखर्जी और वीरेंद्रनाथ मुखर्जी के प्रयासों से इस्पात उद्योग स्थापित होने के बाद आसनसोल औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुआ। यह धीरे-धीरे एक सबसे बड़े उपखंड का आकार ले लिया। एक तरफ रेलवे और दूसरी तरफ इस औद्योगिक क्षेत्र के कारण भारी मात्रा में जंगल काटे गए। इसके अलावा, नौकरी के कारण आए कई लोग इस शहर में बसने लगे। गाँव के बाद गाँव बनते गए। जंगल गायब हो गए और धीरे-धीरे ‘आसान’ वृक्ष आसनसोल से विलुप्त हो गए।
‘आसन’ या ‘आसान’?
इस वृक्ष का नाम ‘आसन’ है या ‘आसान’, इसे लेकर कई बहसें हैं। कई लोग कहते हैं कि वृक्ष का असली नाम ‘आसन’ वृक्ष है। अंग्रेजों ने वर्तनी बनाते समय इसका उच्चारण ‘आसान’ कर दिया था। उदाहरण के तौर पर, शोधकर्ता बताते हैं कि ‘आसन’ वृक्ष के नाम पर आसनसोल में ‘आसनबनी’ और ‘आसनबन’ नाम के स्थान भी हैं। हालांकि, वनस्पतिविदों का कहना है कि दोनों वृक्ष बिल्कुल अलग हैं। ‘आसन’ वृक्ष को आयुर्वेदिक वृक्ष भी माना जाता है। इससे रस निकलता है। यह मध्य और दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है। ‘आसान’ वृक्ष एक कठोर वृक्ष है। इससे रस नहीं निकलता। यह फर्नीचर बनाने में काम आता है। यह एक साल प्रजाति का वृक्ष है। आसनसोल में एक समय जो वृक्ष पाया जाता था, वह यही साल प्रजाति का ‘आसान’ वृक्ष था।
यह वृक्ष क्यों विलुप्त हो गया?
‘आसन’ वृक्ष से आसनसोल शहर का नाम पड़ा, लेकिन अब वह वृक्ष दिखाई नहीं देता। आसनसोल बीबी कॉलेज में केवल एक वृक्ष है और आसनसोल गर्ल्स कॉलेज में एक और वृक्ष का पता चला है। बाकी आसनसोल शहर में ‘आसान’ वृक्ष को ढूंढने पर भी नहीं मिलता। जिस वृक्ष के नाम पर एक शहर का नामकरण हुआ, उसी वृक्ष का आसनसोल में कोई निशान नहीं है। यह बहुत आश्चर्य की बात है।
तो यह वृक्ष विलुप्त क्यों हो गया? विशेषज्ञों का कहना है कि एक तरफ औद्योगिक नगरी बनाने के लिए भारी मात्रा में पेड़ों का सफाया किया गया। दूसरी तरफ, आसनसोल शहर में जो बस्तियाँ बनी हैं, लोगों ने घर बनाए हैं, उसमें लोगों ने जंगल काटकर कंक्रीट के जंगल बना दिए हैं। इसलिए इस वृक्ष के विलुप्त होने के पीछे सभ्यता ही जिम्मेदार है। हालांकि, विशेषज्ञ बताते हैं कि इस वृक्ष के अंकुरण की दर बहुत कम है।
आसनसोल बीबी कॉलेज के बॉटनी विभाग के प्रोफेसर ने बताया, “‘आसान’ वृक्ष के अंकुरण की दर 50 प्रतिशत से भी कम है। और इसी कारण यह वृक्ष विलुप्त हो गया है। क्योंकि बीज से इस वृक्ष का अंकुरण उस तरह से नहीं हुआ। हमने बांकुड़ा से जिस दर से बीज लाए थे, उनमें से लगभग 40 प्रतिशत बीजों में हम आसनसोल के बीबी कॉलेज में अंकुरण कर पाए हैं।”
आसनसोल बीबी कॉलेज के प्रिंसिपल अमिताभ बसु ने ईटीवी भारत को बताया, “‘आसान’ वृक्ष से ही आसनसोल का नामकरण हुआ है। लेकिन इस वृक्ष का अब आसनसोल शहर में कोई निशान नहीं मिलता। हमारे कॉलेज में एक वृक्ष है। और हमने वहीं से सोचा था कि अगर ‘आसान’ वृक्ष के पौधे तैयार किए जा सकें। उसी के अनुसार हमारे बॉटनी विभाग और छात्रों ने बहुत मेहनत से पाँच हज़ार ‘आसान’ वृक्ष के पौधे तैयार किए हैं। ये पौधे हम विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों को देंगे, जो पेड़-पौधों की देखभाल करते हैं, पेड़ लगाते हैं। इसके अलावा, कोई भी उत्साही व्यक्ति या संगठन अगर पेड़ लगाना चाहता है और उनकी देखभाल करना चाहता है।”
बीबी कॉलेज के बॉटनी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अनिमेष मंडल ने बताया, “हमें आसनसोल शहर में ‘आसान’ वृक्ष के बीज नहीं मिले। इसलिए हमने बांकुड़ा से बीज मँगवाए थे। लेकिन इन बीजों से अंकुरण करने में हमारे बॉटनी विभाग और एनएसएस के छात्रों को बहुत मेहनत करनी पड़ी। क्योंकि इन बीजों के अंकुरण की दर बहुत कम है। हम केवल 40 प्रतिशत बीजों से अंकुरण करके पौधे तैयार कर पाए हैं। लेकिन भविष्य में हमारी और भी पौधे तैयार करने की इच्छा है। हम चाहते हैं कि पूरा शहर इन पेड़ों से भर जाए। शहर अपने नाम के वृक्ष के साथ हरा-भरा हो जाए।”
आसनसोल बीबी कॉलेज के एनएसएस विभाग के सुकुमार दे ने बताया, “छात्र इस वृक्ष के पौधे तैयार करते समय बहुत उत्साहित थे। उन्होंने बीजों को भिगोकर धैर्यपूर्वक अंकुरण किया और फिर ये छोटे पौधे बने। चूंकि शहर का नाम इस वृक्ष से आया है, इसलिए छात्रों में भी बहुत उत्साह था कि यह वृक्ष कैसा दिखता है। उन्होंने शिक्षकों और विशेषज्ञों के सहयोग से अपने हाथों से ये पौधे तैयार किए हैं।”
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