Semiconductor Revolution: भारत की तकनीकी यात्रा अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। जिस छोटे से चिप ने पूरी दुनिया की डिजिटल अर्थव्यवस्था को गति दी है—वही सेमीकंडक्टर अब भारत की धरती पर बनने लगे हैं। लंबे समय तक भारत को मोबाइल, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल और रक्षा उपकरणों के लिए चिप्स का आयात करना पड़ता था। परंतु अब सरकार के “मेक इन इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन” ने एक ऐसा अध्याय शुरू किया है, जो भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर मानचित्र पर नई पहचान दिलाने वाला है।
पहली स्वदेशी चिप: आत्मनिर्भरता की मिसाल (Semiconductor Revolution)
हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने देश में बनी पहली चिप प्रधानमंत्री के समक्ष प्रस्तुत की। यह चिप न केवल तकनीकी दृष्टि से अहम है, बल्कि यह भारत की स्वदेशी क्षमता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी है।
पिछले दशकों में भारत लगभग ९०% से अधिक चिप्स का आयात करता रहा है। इससे न केवल विदेशी मुद्रा पर बोझ बढ़ता था, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी भारत असुरक्षित महसूस करता था। लेकिन अब भारत ने २८ नैनोमीटर तकनीक से शुरुआत कर दी है और सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले ५–७ वर्षों में भारत ७ नैनोमीटर तक की उन्नत चिप्स भी तैयार करेगा।
गुजरात और उत्तर प्रदेश: सेमीकंडक्टर उत्पादन के नए केंद्र
भारत में सबसे बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर निर्माण इकाइयाँ गुजरात के धोलेरा और उत्तर प्रदेश के जेवर में स्थापित की जा रही हैं।
- गुजरात में टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स और ताइवान की PSMC मिलकर एक विशाल फैब प्लांट बना रहे हैं। इसमें हर महीने लगभग ५०,००० वेफर उत्पादन की क्षमता होगी।
- वहीं उत्तर प्रदेश में HCL और Foxconn के संयुक्त निवेश से एक नया चिप निर्माण संयंत्र स्थापित हो रहा है।
इसके अलावा, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे राज्यों में भी इस क्षेत्र में बड़े निवेश की योजना चल रही है।
अर्थव्यवस्था और रोजगार पर असर
भारत सरकार ने अब तक लगभग १० सेमीकंडक्टर परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है, जिनमें कुल निवेश का अनुमान १८ अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
इन परियोजनाओं से लाखों नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। चिप डिज़ाइन, निर्माण, गुणवत्ता परीक्षण और अनुसंधान जैसी प्रक्रियाओं के लिए बड़ी संख्या में इंजीनियरों और तकनीशियनों की ज़रूरत होगी।
विशेष बात यह है कि अब केवल IIT और NIT ही नहीं, बल्कि देश के अन्य मध्यम और छोटे कॉलेजों से भी स्नातक विद्यार्थी सीधे इस उद्योग में अवसर पा रहे हैं। शुरुआती वेतन भी आकर्षक है—प्रति वर्ष औसतन ६ से १२ लाख रुपये।
अनुसंधान और नवाचार में भारत का योगदान
देश के शैक्षणिक संस्थान भी इस क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
- NIT राउरकेला और PMEC बेरहामपुर ने मिलकर तीन अनोखी चिप्स विकसित की हैं—जिनमें स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सेंसर सर्किट, डाटा सुरक्षा हेतु एन्क्रिप्शन कोर, और उच्च क्षमता वाला मल्टिप्लायर आईसी शामिल है।
- ये नवाचार भारत को चिकित्सा, रक्षा और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाएंगे।
दूरसंचार क्षेत्र में पहली सफलता
भारत में बनी चिप का पहला वास्तविक उपयोग दूरसंचार क्षेत्र में हुआ है। हाल ही में देश का पहला टेलीकॉम सिस्टम, जिसमें स्वदेशी चिप का इस्तेमाल हुआ, उसे सरकार की ओर से TEC सर्टिफिकेशन प्रदान किया गया। यह प्रमाणन दर्शाता है कि भारत अब विदेशी चिप्स पर निर्भर हुए बिना अपना टेलीकॉम नेटवर्क खड़ा कर सकता है।
मानव संसाधन और वैश्विक सहयोग
सेमीकंडक्टर उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए भारत केवल कारखानों तक सीमित नहीं है। सरकार और निजी क्षेत्र लगातार मानव संसाधन में निवेश कर रहे हैं।
- रामैया यूनिवर्सिटी के छात्र अब अमेरिका की University at Albany से सेमीकंडक्टर निर्माण में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।
- इस तरह भारत के युवा इंजीनियर वैश्विक मानकों की तकनीक सीखकर देश में लागू करेंगे।
शेयर बाज़ार में सकारात्मक संकेत
भारत के शेयर बाज़ार में भी इस क्रांति की झलक दिख रही है। Moschip Technologies जैसी कंपनियों के शेयर हाल ही में लगभग १९% बढ़ गए। इससे निवेशकों का विश्वास स्पष्ट होता है कि सेमीकंडक्टर क्षेत्र भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने जा रहा है।
भारत के सामने चुनौतियाँ (Semiconductor Revolution)
हालाँकि भारत ने बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी सामने हैं:
- उन्नत मशीनरी और कच्चे माल के लिए अभी भी विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए अनुसंधान व विकास (R&D) पर निरंतर निवेश।
- प्रशिक्षित मानव संसाधन को देश में बनाए रखना, ताकि ‘ब्रेन ड्रेन’ न हो।
सरकार इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ, कर में छूट और वैश्विक भागीदारी जैसी रणनीतियाँ अपना रही है।
सेमीकंडक्टर आज की दुनिया का मूल आधार है। मोबाइल फोन, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल, मेडिकल उपकरण, रक्षा प्रणाली—सब कुछ चिप्स पर निर्भर है।
अब तक भारत केवल उपभोक्ता था, परंतु अब भारत निर्माता बन रहा है। “मेक इन इंडिया” सेमीकंडक्टर मिशन भारत की आत्मनिर्भरता, आर्थिक शक्ति और तकनीकी भविष्य का प्रतीक है।
आने वाले वर्षों में जब भारतीय चिप्स वैश्विक बाज़ार में अपनी पहचान बनाएँगे, तब यह स्पष्ट होगा कि भारत केवल डिजिटल सेवाओं का देश नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक सेमीकंडक्टर शक्ति के रूप में उभर चुका है।
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