From Fiction to Summit: बांग्ला साहित्य की कालजयी कृति ‘चांदेर पहाड़’ को असलियत की धरती पर उतार कर, पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले के करिमपुर निवासी युवा ज्योतिष्क विश्वास ने जो इतिहास रचा, वह सिर्फ एक पर्वतारोहण नहीं, बल्कि एक साहित्यिक श्रद्धांजलि, एक सांस्कृतिक विजय और एक बांगाली आत्मा की जिजीविषा का प्रतीक बन गया है।
📚 साहित्य से शुरू हुआ एक सपना
1937 में प्रकाशित बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की प्रसिद्ध उपन्यास चांदेर पहाड़ बांग्ला साहित्य की वह कृति है, जिसने पीढ़ियों के दिलों में रोमांच, यात्रा और अन्वेषण का बीज बोया। उपन्यास का नायक शंकर—एक युवा रेलकर्मी—जिस प्रकार अफ्रीका की अनजानी, रहस्यमयी और खतरनाक भूमि में अपने सपनों का पीछा करता है, उसने न केवल किशोर पाठकों को रोमांचित किया, बल्कि एक पूरी पीढ़ी को सपने देखने की ताक़त दी।
उसी साहित्यिक प्रेरणा से जन्मा ज्योतिष्क विश्वास का सपना — एक दिन उस काल्पनिक ‘चांदेर पहाड़’ को असलियत में छूना।
“मैंने सिर्फ चांदेर पहाड़ को पढ़ा नहीं,” कहते हैं ज्योतिष्क, “मैंने उसे जिया है — अब वक्त था उसे दुनिया को दिखाने का।”
🚴♂️ करिमपुर से अफ्रीका तक: एक असाधारण शुरुआत
पश्चिम बंगाल के करिमपुर कस्बे में पले-बढ़े ज्योतिष्क का बचपन ही घुमक्कड़ी में बीता। उनके पिता भारतीय सेना में थे, जिससे उन्हें भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने का अवसर मिला। बचपन से ही रोमांच, साहसिक साहित्य और साइकिलिंग के प्रति गहरा लगाव रहा — और इन्हीं तत्वों ने उनकी अद्वितीय यात्रा की नींव रखी।
जून 2024 में, पूरी तरह से स्वयं वित्तपोषित योजना के तहत, ज्योतिष्क अफ्रीका के लिए रवाना हुए। उनका लक्ष्य था — रूवेंजोरी पर्वतमाला का सबसे ऊँचा शिखर ‘मार्घेरिटा पीक’ (5,109 मीटर / 16,763 फीट) — जो अफ्रीका का तीसरा सबसे ऊँचा पर्वत है, किलिमंजारो और माउंट केन्या के बाद।
📖 जब साहित्य और वास्तविकता में बनता है एक पुल
एक अविश्वसनीय संयोग इस यात्रा को और भी अनोखा बनाता है। चांदेर पहाड़ उपन्यास में शंकर की यात्रा शुरू होती है केन्या के मोम्बासा रेलवे हेडक्वार्टर से। सौ साल बाद, उसी स्थान से ज्योतिष्क ने अपनी यात्रा आरंभ की — जैसे साहित्य और यथार्थ एक-दूसरे में समाहित हो गए हों।
“जब मैंने उसी जगह से अपनी यात्रा शुरू की जहाँ से शंकर ने की थी,” कहते हैं वे, “तो ऐसा लगा जैसे मैं उपन्यास के भीतर चला गया हूँ।”
🌍 अफ्रीका के जंगलों और पगडंडियों से गुज़री यात्रा
ज्योतिष्क ने अपनी साइकिल के साथ केन्या, तंज़ानिया और युगांडा जैसे अनेक अफ्रीकी देशों की कठिन और अनजानी पगडंडियों को पार किया। रास्ते में वे लोकल लोगों से मिले, वहाँ की संस्कृति में घुले-मिले, और अनुभवों का एक समृद्ध खज़ाना इकट्ठा किया।
पर ये यात्रा सिर्फ सौंदर्य से नहीं, खतरों से भी भरपूर थी। युगांडा के जंगलों में एक इंसानखोर शेर के पंजों के निशान, भयंकर बारिश, बीमारियों का डर, और निर्जन स्थानों में रात बिताने की चुनौती — हर कदम पर साहस का इम्तिहान था।
एक वीडियो संदेश में ज्योतिष्क ने कहा:
“बिभूतिबाबू, मैं यहाँ हूँ… आपके सपने को साकार करने के लिए।”
🧗♂️ चोटी की ओर अंतिम चढ़ाई
लंबी, कठिन और दिल थाम देने वाली चढ़ाई के बाद अंततः ज्योतिष्क उस ऐतिहासिक क्षण तक पहुँचे — मार्घेरिटा पीक की चोटी। ठंडी हवा, बर्फीली चोटियाँ, और मीलों दूर तक फैला नीला आकाश — उस क्षण में केवल एक चीज़ थी जो और अधिक ऊँची थी — उनकी श्रद्धा।
हाथ में बिभूतिभूषण की किताब चांदेर पहाड़, और जेब में एक चिट्ठी, जिस पर लिखा था:
“Tribute to Bibhutibhushan Bandyopadhyay”
उस चिट्ठी को उन्होंने शिखर पर छोड़ा — एक ऐसी श्रद्धांजलि जो न समय की सीमा जानती है, न भूगोल की। वह पत्र मानो शंकर के दिल से निकलकर बिभूतिभूषण के चरणों में पहुँचा।
💫 जब साहित्य जीवन का मार्गदर्शन बन जाए
इस यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि किताबें केवल पढ़ने के लिए नहीं होतीं — वे जीने और आगे बढ़ने की प्रेरणा बन सकती हैं। आज के दौर में, जब दुनिया स्क्रीन की चमक में खो रही है, ज्योतिष्क का यह प्रयास एक उज्ज्वल रेखा की तरह उभरता है — यह दिखाने के लिए कि कहानियाँ अब भी दुनिया बदल सकती हैं।
यह कोई स्पॉन्सर्ड यात्रा नहीं थी। न कोई विज्ञापन, न प्रचार — सिर्फ़ जुनून, मेहनत, और बांग्ला साहित्य के प्रति अटूट निष्ठा।
🧭 एक मानसिक, शारीरिक और सांस्कृतिक विजय
यह विजय केवल एक पर्वत की नहीं थी। यह एक मन की, आत्मा की और साहित्यिक धरोहर की विजय थी। यह यात्रा उस बांगाली मानस की जीत थी, जो अब भी कल्पना को यथार्थ में बदलने की ताक़त रखता है।
ज्योतिष्क के इस साहसिक अभियान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बांग्ला साहित्य जीवित है — और वह केवल पाठकों के दिलों में नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे ऊँची चोटियों पर भी अपना झंडा लहरा सकता है।
🌠 एक नई शुरुआत
अब जब ज्योतिष्क विश्वास भारत लौटेंगे, वे सिर्फ एक पर्वतारोही नहीं, बल्कि एक संस्कृतिक दूत के रूप में याद किए जाएँगे। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि कोई भी सपना — चाहे वह पन्नों पर ही क्यों न जन्मा हो — सच्चाई बन सकता है, अगर उसमें साहस, समर्पण और उद्देश्य हो।
“अगर किसी किताब ने आपको कभी झकझोरा हो — तो उसे सिर्फ याद न करें,” कहते हैं वे, “उसे जिएं। उसके पीछे चलें। वो आपको दुनिया की सबसे ऊँची जगहों तक ले जा सकती है।”
🔚 उपसंहार
‘चांदेर पहाड़’ अब सिर्फ़ बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय की रचना नहीं रही। यह अब ज्योतिष्क विश्वास की ज़िंदगी की हक़ीक़त बन गई है। यह एक उपन्यास से निकलकर एक ऐसी दास्तान में बदल गया है जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।
और पढ़ें: सुंदरबन: सिर्फ बाघ और मगरमच्छ से बढ़कर है यहां का ग्रामीण जीवन
[…] […]