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सुंदरबन: सिर्फ बाघ और मगरमच्छ से बढ़कर है यहां का ग्रामीण जीवन

Beyond the Tiger: जब भी सुंदरबन का नाम आता है, आंखों के सामने पीले और काले धारीदार रॉयल बंगाल टाइगर की छवि तैरने लगती है. इन्हें देखने की उत्सुकता जितनी होती है, उतना ही डर भी. मैंग्रोव से घिरे इस वन के बारे में एक कहावत मशहूर है, “पानी में मगरमच्छ का डर, जमीन पर बाघ का.” सुंदरबन का मतलब ही कदम-कदम पर रोमांच है.

लेकिन क्या भारत के सबसे बड़े मैंग्रोव वन की पहचान बस इतनी ही है? क्या यह सिर्फ प्रकृति और वन्यजीवों की खोज तक ही सीमित है? पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए तो इस क्षेत्र का हमेशा से ही एक अलग महत्व रहा है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में यात्रा की परिभाषा बदल गई है. मानसून आते ही सुंदरबन में इलिश उत्सव मनाने की होड़ मच जाती है. नदी में तैरते हुए चावल और इलिश मछली खाना, मैंग्रोव वनों के लोकप्रिय स्थलों की सैर करना – इसी तरह से आजकल लोग इस प्रसिद्ध डेल्टा क्षेत्र को जान रहे हैं.

पर सुंदरबन सिर्फ बाघ और मगरमच्छ देखने या इलिश उत्सव मनाने की जगह नहीं है. अगर आप भीड़-भाड़ से दूर, दो दिनों की शुद्ध ग्रामीण जीवन का अनुभव लेना चाहते हैं, तो कुमिरमारी की यात्रा पर निकल पड़िए.

यहां के गांव के लोगों का मुख्य पेशा खेती-बाड़ी है. कुछ लोग मछली पकड़कर भी गुजारा करते हैं. वैकल्पिक आजीविका की तलाश में आजकल कुछ लोग शहद पालन भी करने लगे हैं. कुल मिलाकर, यहां की जीवनशैली बहुत सरल है. रोजमर्रा की जिंदगी की थकान और जटिलताओं से मुक्ति पाने के लिए दो दिन ऐसे गांव में बिताना एक बेहतरीन अनुभव हो सकता है.

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कुछ इको-रिसॉर्ट और ठहरने के लिए कुछ अन्य जगहें भी बनाई गई हैं. कुमिरमारी में घूमने के लिए कोई खास “स्पॉट” नहीं है. हालांकि, गांव के खेत-खलिहान, नदियां, रास्ते और नहरें देखकर खूब समय बिताया जा सकता है. पेड़ों पर लगे फल और सब्जियां – आजकल देखने का मौका कहां मिलता है? यदि आप अपने छोटे बच्चों को ग्रामीण बंगाल दिखाना चाहते हैं, उन्हें मैंग्रोव और किताबों में पढ़े डेल्टा क्षेत्र से परिचित कराना चाहते हैं, तो इस तरह की यात्रा की योजना बना सकते हैं.

और पढ़ें: सलुमारादा थिमक्का: ‘भारत की वृक्ष-माता’ की हरियाली से लिपटी जीवंत प्रेरणा

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