A New Era of Attention: आज के डिजिटल युग में बच्चों की पढ़ाई को सबसे अधिक जो चुनौती मिल रही है, তা है एकाग्रता की कमी। स्मार्टफोन, वीडियो गेम, यूट्यूब, और अन्य डिजिटली प्लेटफॉर्म्स ने बच्चों के मन को किताबों से बहुत दूर कर दिया है। ऐसे समय में किताबों पर ध्यान केंद्रित कर पाना एक कठिन युद्ध जैसा হয়ে উঠा है। लेकिन इसी चुनौती को अवसर में পরিণত करने का बीड़ा उठाया है एक नई पहल ने—जिसका नाम है ‘ब्रेन ट्रेनिंग’ या ‘माइंडफुल लर्निंग’।
देश के कई प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हाल ही में एक विशेष शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू हुआ है, जिसमें बच्चों को सिखाया जा रहा है कि कैसे वे अपने मन को एक बिंदु पर केंद्रित करके अधिक प्रभावी रूप से पढ़ाई कर सकते हैं।
‘ब्रेन फोकस मेथड’ क्या है?
इस नए शिक्षा पद्धति को ‘ब्रेन फोकस मेथड’ कहा जा रहा है। यह तरीका बच्चों को केवल विषयवस्तु सिखाने पर केंद्रित नहीं है, बल्कि उनके मानसिक विकास, धैर्य, आत्मनियंत्रण और दीर्घकालिक स्मृति को भी मजबूत करने की दिशा में काम करता है।
इस पद्धति के अंतर्गत बच्चों को निम्नलिखित कौशल सिखाए जा रहे हैं:
- गहरी एकाग्रता क्या होती है, और कैसे उसे बनाए रखा जाए।
- श्रवण के माध्यम से सीखना, यानी सुनकर जानकारी को याद रखना।
- स्मृति को बेहतर बनाने के वैज्ञानिक उपाय।
- धैर्य और आत्मनियंत्रण के साथ सीखने की आदत।
पारंपरिक पद्धति से अलग
यह पद्धति केवल रटने या किताबें पढ़ने तक सीमित नहीं है। इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि बच्चा जो देखे, सुने और समझे, वह उसके मस्तिष्क में स्थायी रूप से अंकित हो। इसे एक संवेदी अनुभव (Sensory Learning Experience) के रूप में विकसित किया गया है, जिससे बच्चों को विषयों को कुल अनुभव के रूप में ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है।
स्कूलों में प्रयोग और अनुभव
देश के कई हिस्सों में इस पद्धति को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया गया है। पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, और महाराष्ट्र के कुछ सरकारी स्कूलों ने इसे अपनाया है। शिक्षकों के अनुसार,
“बच्चे अब कक्षा में अधिक ध्यान दे रहे हैं। वे केवल चुपचाप नहीं बैठते, बल्कि प्रश्न पूछते हैं, बहस करते हैं और अपने विचार व्यक्त करते हैं।”
अभिभावकों की प्रतिक्रिया
अभिभावक भी इस बदलाव को महसूस कर रहे हैं। एक अभिभावक ने कहा,
“मेरा बेटा पहले 10 मिनट भी किताब के सामने नहीं टिकता था, लेकिन अब वह खुद से पढ़ाई करने बैठता है। यह मेरे लिए चौंकाने वाला अनुभव है।”
बच्चों में केवल पढ़ाई में रुचि नहीं बढ़ी है, बल्कि उनकी आत्म-विश्वास, व्यवहार और संवाद क्षमता में भी स्पष्ट परिवर्तन देखने को मिला है।
विशेषज्ञों की राय
बाल मनोविज्ञानी और शैक्षणिक विशेषज्ञों का मानना है कि एकाग्रता और मानसिक अनुशासन सीखने योग्य कौशल हैं। यदि इन्हें प्रारंभिक उम्र से ही सिखाया जाए, तो बच्चों का सम्पूर्ण व्यक्तित्व बेहतर बन सकता है।
प्रसिद्ध बाल मनोविज्ञानी डॉ. अनामिका सिन्हा के अनुसार,
“आज के बच्चों को मानसिक शांति और फोकस की सबसे अधिक आवश्यकता है। यह नई शिक्षा पद्धति उन्हें बाहरी उत्तेजनाओं से बचाकर अंदर की शक्ति को विकसित करने का अवसर देती है।”
वैज्ञानिक आधार
‘ब्रेन ट्रेनिंग’ पद्धति न्यूरो-साइंस के सिद्धांतों पर आधारित है। अध्ययन में पाया गया है कि नियमित फोकस अभ्यास से बच्चों के न्यूरल नेटवर्क्स मजबूत होते हैं, जिससे वे जानकारी को लंबे समय तक याद रख सकते हैं।
ध्यान (Meditation), ब्रेथिंग टेक्निक, माइंडफुल गेम्स और विज़ुअल स्टोरीटेलिंग जैसे तरीकों को भी इस पद्धति में शामिल किया गया है।
परिणाम और विस्तार
इस पद्धति को अपनाने वाले स्कूलों की रिपोर्ट के अनुसार:
- कक्षा में बच्चों की भागीदारी 60% तक बढ़ी है।
- टेस्ट स्कोर में औसतन 15-20% का सुधार देखा गया।
- शिक्षक और छात्र के बीच सकारात्मक संवाद की वृद्धि हुई है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा इस पद्धति को अगले शैक्षणिक वर्ष में 500 और स्कूलों में लागू करने की योजना बनाई जा रही है।
शिक्षकों के लिए भी नया अनुभव
इस पद्धति ने सिर्फ छात्रों को ही नहीं, बल्कि शिक्षकों को भी बदल दिया है। अब शिक्षक सिर्फ जानकारी देने वाले नहीं हैं, बल्कि कोच, गाइड और मेंटर की भूमिका में आ गए हैं।
एक शिक्षिका कहती हैं,
“अब मुझे बच्चों की आंखों में सवाल दिखते हैं, उत्सुकता दिखती है। यह मेरे लिए भी सीखने का नया अनुभव है।”
छोटे बीज से बड़े परिवर्तन की ओर
इस पहल ने यह साबित कर दिया है कि यदि शिक्षा पद्धति को थोड़े रचनात्मक तरीके से बदला जाए, तो बच्चों के जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन संभव है। यह केवल शिक्षा सुधार नहीं, बल्कि मानव मन की संभावनाओं को जागृत करने की एक यात्रा है।
निष्कर्ष
एकाग्रता की समस्या कोई अभिशाप नहीं है। यह एक कौशल है, जिसे सिखाया, सीखा और अभ्यास के माध्यम से निखारा जा सकता है। ‘ब्रेन ट्रेनिंग’ एक ऐसा ही रास्ता है, जो बच्चों को सिर्फ बेहतर विद्यार्थी नहीं, बल्कि बेहतर इंसान बनने में मदद कर सकता है।
यदि यह पहल देशभर के स्कूलों में व्यापक रूप से लागू की जाती है, तो आने वाले वर्षों में हम एक जागरूक, आत्म-नियंत्रित और सृजनशील पीढ़ी को देख सकेंगे।
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